एनीमिया दूर करेगा फोर्टिफाइड चावल

देश में एनीमिया की समस्या से निपटने और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए, केंद्र ने चावल मिल मालिकों के बीच जागरूकता पैदा करके तथा उनको प्रोत्साहन देकर चावल के फोर्टिफिकेशन की क्षमता 15,000 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 3.5 लाख मीट्रिक टन करने के कार्य को गति दी है।
नीति आयोग ने अपनी "न्यू इंडिया @ 75 के लिए रणनीति" में बुनियादी आहार के अनिवार्य फोर्टिफिकेशन पर विचार करने तथा सरकारी कार्यक्रमों, टीपीडीएस (एनएफएसए) आईसीडीएस, मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएम) आदि में संतुलित खाद्यान्नों को शामिल करने को सर्वोपरि रखा है।
भारतीय खाद्य निगम के साथ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने अप्रैल 2021 से आईसीडीएस/एमडीएम के तहत फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की योजना बनाई है। भारतीय खाद्य निगम ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आईसीडीएस/एमडीएम के तहत वितरण के लिए अब तक पूरे देश में लगभग 6.07 लाख मीट्रिक टन फोर्टिफाइड चावल (एफसीआई और डीसीपी) की खरीद की है। चावल के फोर्टिफिकेशन को और बढ़ाने का प्रस्ताव अभी प्रक्रिया में है। चावल मिल मालिकों के बीच प्रोत्साहन और जागरूकता को बढ़ा करके चावल के फोर्टिफिकेशन की क्षमता में वृद्धि करके इसे 15,000 मीट्रिक टन से 3.5 लाख मीट्रिक टन करने के लिए तेजी लाई जा रही है।
चावल के फोर्टिफिकेशन की वृद्धि संबंधी लागत 0.73 रुपये प्रति किलोग्राम तय की गई है, जिसमें एफआरके खरीद और परिवहन, परिचालन लागत, मूल्य में कमी, कुल निवेश पर वार्षिक ब्याज लागत, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, गुणवत्ता नियंत्रण (प्रयोगशाला परीक्षण व संग्रह शुल्क आदि) जैसे घटक शामिल हैं।
वर्तमान में 6 राज्यों में "सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत चावल के फोर्टिफिकेशन और इसके वितरण" पर केंद्र द्वारा प्रायोजित प्रायोगिक परियोजना के तहत आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश ने पायलट योजना के तहत फोर्टिफाइड चावल का वितरण करना शुरू कर दिया है। केरल और ओडिशा राज्यों द्वारा शीघ्र ही वितरण कार्य शुरू करने की संभावना है। इस योजना के तहत मई 2021 तक लगभग 1.73 लाख मीट्रिक टन फोर्टिफाइड चावल वितरित किए गए हैं।
आहार में विटामिन और खनिज पोषक तत्वों  की उचित मात्रा को सुनिश्चित करने तथा पोषण सुरक्षा की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाने और देश में एनीमिया व कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टिफिकेशन एक लागत प्रभावी तथा पूरक रणनीति है। इस रणनीति के तहत दुनिया के कई क्षेत्रों में इसके अच्छेा परिणाम देखे गए हैं। यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में, 6-59 महीने की उम्र वाले 58.5% छोटे बच्चे, प्रजनन आयु वर्ग में 53% महिलाएं और 15-49 वर्ष की आयु के सभी पुरुषों में से 22.7% एनीमिया से पीड़ित हैं।
 (स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) - IV (2015-16)।