बढ़ते स्मोग और प्रदूषण से सांस की समस्याएं

सर्द हवाओं के बीच स्मोग और वायु प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ गया है, जिससे लोगों के फेफड़ों में वायुमार्ग के अवरूद्ध होने की तीव्रता बढ़ रही है, इससे सांस की समस्याएं बढ़ रही हैं।  लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए फेफड़ों को स्वस्थ रखना सबसे महत्वपूर्ण है।
वायु प्रदूषण के प्रभावों का मुकाबला कैसे किया जाए
 फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए यह जानना जरूरी है कि वायु प्रदूषण के प्रभावों का मुकाबला कैसे किया जाए। और इसके लिए विश्वसनीय स्रोतों से सही जानकारी की आवश्यकता होती है, जो कि हेल्दी लंग पोर्टल (www.thehealthylungs.com) पर उपलब्ध है - फेफड़ों के रोगों पर एक ही स्थान पर विश्वसनीय जानकारियों का संग्रह। पोर्टल जागरूकता बढ़ाने, मिथकों को दूर करने, ज्ञान में सुधार करने और मरीजों को उनके फेफड़ों के रोगों के लिए जो उपचार दिया जा रहा है उसका ठीक तरह से पालन करने के लिए प्रेरित करने के लिए समर्पित है।
  वायु प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख लोग असमय मृत्यु का शिकार होते हैं
 विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख लोग असमय मृत्यु का शिकार होते हैं। अधिकांश भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्युआई) असामान्य रूप से उच्च है, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित की तुलना में लगभग 5 गुना अधिक। भारत की राजधानी दिल्ली लगातार पांच साल से दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर है। और जब कोई खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आता है, तो वह वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। इनमें खांसी, सीने में दर्द, गले में जलन, नाक के रास्ते में रुकावट, वायुमार्ग में सूजन, अस्थमा और कई समस्याएं शामिल हैं।
  अस्थमा अटैक 
वायुमार्ग में सूजन के कारण अस्थमा जैसी फेफड़ों की समस्याओं से जूझ रहे  मरीजों को सर्दी के मौसम में परेशानी हो सकती है। सर्दियों के दौरान अस्थमा के मरीजों के लक्षण और गंभीर हो जाते हैं और अस्थमा अटैक आने की आशंका भी बढ़ जाती है। उन्हें सर्दी या फ्लू हो सकता है क्योंकि बाहर की हवा ठंडी और शुष्क होती है। अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए जुकाम और फ्लू सबसे प्रमुख ट्रिगर होते हैं। और अस्थमा के 75 प्रतिशत मरीजों में सर्दी या फ्लू होने पर उनके लक्षण बदतर हो जाते हैं। अगर किसी को अस्थमा के साथ सर्दी या फ्लू है तो उसे अस्थमा अटैक होने का खतरा अधिक होता है।
  अस्थमा के लक्षण
  अस्थमा के लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकते हैं। सांस फूलना, सीने में जकड़न या दर्द, सांस छोड़ते समय घरघराहट, सांस की तकलीफ के कारण नींद न आना, खांसी आना अस्थमा के सामान्य लक्षण हैं। अस्थमा के लक्षण लगातार होने वाले और परेशान करने वाले होते हैं। कुछ लोगों में अस्थमा कई स्थितियों में अचानक से गंभीर हो जाता है जैसे एक्सरसाइज करते समय अस्थमा के लक्षण अचानक बढ़ जाना, अगर हवा ठंडी और शुष्क है तो ये और अधिक गंभीर हो जाना; पेशेवर कारणों की वजह से कार्यस्थल पर वायुजनित पदार्थों जैसे रासायनिक धुएं, गैसों या धूल और एलर्जी से प्रेरित अस्थमा ट्रिगर होना। 
जोखिम कारक
  कुछ जोखिम कारक अस्थमा के विकसित होने की संभावना को बढ़ाते हैं जैसे कि रक्त संबंधियों (माता-पिता या भाई-बहन) को अस्थमा होना, वजन अधिक होना, धुम्रपान करना, धुम्रपान करने वाले के संपर्क में आना (सेकंड हैंड स्मोकिंग), कारखानों या दूसरे स्थानों से निकलने वाले धुएं या अन्य प्रकार के प्रदूषण के संपर्क में आना। हालांकि, अस्थमा को ठीक करने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन बहतरीन तरीके से तैयार की गई रणनीति अस्थमा अटैक को रोकने में सहायता कर सकती है। शुरूआत में ही अस्थमा का उपचार कराने से फेफड़ों की दीर्घकालिक क्षति को रोका जा सकता है और स्थिति को समय के साथ खराब होने से बचाया जा सकता है। अस्थमा एक लगातार बनी रहने वाली स्वास्थ्य समस्या है जिसे नियमित रूप से निगरानी और उपचार की आवश्यकता होती है।
  यदि अस्थमा के लक्षण गंभीर हो रहे हों और दवाईयों से भी उनमें सुधार नहीं आ रहा हो तो, जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से मिलें। अगर अस्थमा के लक्षण गंभीर होने लगें तो, आपको तुरंत राहत देने वाले इन्हेलर का इस्तेमाल करने की आवश्यकता हो सकती है। अल्केम अपने हेल्दी लंग्स इनीशिएटिव के द्वारा लोगों को सही जानकारियां उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है ताकि सूचित स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लिए जा सकें जो उनके लिए जीवन रक्षक हो सकते हैं।