मोटापा अब पश्चिमी देशों की समस्या नहीं है, भारत भी दुनिया के शीर्ष पांच सर्वाधिक मोटे देशों के क्लब में शामिल हो गया है, मेट्रो शहरों में इसके मामले अधिक देखे जा रहे हैं
भारत में मोटापे के मामले विश्व औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। फऱवरी 2020 में एक शोध लेख के अनुसार, 1998 और 2015 के बीच मोटापे के कुल मामले 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गए हैं। इसके बढ़ते मामलों के कारण गैर-संचारी (नान कम्युनिकेबल) रोगों का बोझ भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत विश्व के तीन शीर्ष मोटे देशों के क्लब में शामिल हो गया है, मेट्रो शहरों में लोग मोटापे का शिकार अधिक हो रहे हैं।
वसंत कुंज स्थित, फोर्टिस एफएलटी लेफ्टिनेंट. राजन ढल अस्पताल के गैस्ट्रोइंटेस्टिनल, बैरियाट्रिक एंड मेटाबॉलिक सर्जरी के निदेशक, डॉ अमित जावेद कहते हैं, "भारत में मोटापा खतरनाक दर से बढ़ रहा है, जो बड़े पैमाने पर आबादी के लिए एक गंभीर खतरा है। हमारे देश में इसके बढ़ते मामले, डाबिटीज़, हाइपोथायराइडिज़्म, कोरोनरी धमनी रोग, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया, अवसाद, फैटी लिवर, गाल ब्लैडर/पित्ताश्य की पथरी, पीओसीडी (पॉली सिस्टिक ओवरी डिसआर्डर), बांझपन, सैक्युअल डिसफंक्शन आदि का कारण बन रहा है। अब मोटापा केवल सौंदर्य या व्यक्तित्व से जुड़ी समस्या नहीं है। मोटापे के मामलों में लगातार बढ़ोतरी का सबसे प्रमुख कारण जीवनशैली में बदलाव है। जिसमें खानपान की आदतें (भोजन में बदलाव और उच्च कैलोरी व कम पोषकता वाले स्नैक्स), शारीरिक सक्रियता में कमी, तनाव व अवसाद, पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, कुशिंग्स डिसीज़ और हाइपोथायराइडिज़्म जैसी हार्मोनल स्थितियां शामिल हैं। मोटापा अब भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुंच गया गै, जो पहले इस बीमारी से बचे हुए थे।"
मोटापे को एक साधारण सूत्र बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) द्वारा निर्धारित किया जाता है, जो किसी व्यक्ति की मीटर में ऊंचाई के वर्ग को किलोग्राम में उसके वज़न से विभाजित करके निकाला जाता है। उच्च बीएमआई, शरीर में वसा की उच्च मात्रा का संकेतक हो सकता है। यह समस्या की गंभीरता को ग्रेड करने में सहायता करता है। जिन लोगों का बीएमआई 30 या अधिक होता है, उन्हें मोटे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
डॉ. जावेद कहते हैं, "मोटापा, के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण जरूरी है, जिसमें एक अच्छा चिकित्सक/फिजिशियन, पोषण विशेषज्ञ और सर्जन शामिल है। इसका उद्देश्य स्वस्थ्य तरीके से वज़न कम करना है। प्रारंभ/शुरूआत में हार्मोनल असंतुलन को ठीक करने का प्रयास किया जाता है, इससे वज़न कम करने में सहायता मिल सकती है। कई मामलों में चिकित्सीय उपचार और आहार संबंधी बदलाव कारगर साबित होते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में वांछित दीर्घकालिक परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। इस तरह के मामलों में, सर्जरी एक विकल्प हो सकता है, जो न केवल सहरूग्णता को दूर करने में सहायता करता है, बल्कि वज़न घटाने का दीर्घकालिक लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकता है।"
डॉ. जावेद ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "व्यक्ति विशेष की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, आहार विशेषज्ञ की देखरेख में उसके लिए एक डाइट चार्ट तैयार किया जाता है। रोगी को नियमित रूप से व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसकी अवधि और तीव्रता धीरे-धीरे बढ़ाई जाती है। ऐसे रोगियों के लिए, वज़न कम करने के लिए सर्जरी सबसे अच्छा विकल्प है। और सर्जरियों के दायरे में, बैरियाट्रिक सर्जरी या वज़न घटाने वाली सर्जरी एक प्रभावी उपचार विकल्प माना जाता है। यह वज़न कम करने का एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। इसमें विभिन्न प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं, जो रोगी की व्यक्तिगत स्थिति के आधार पर चुनी जाती हैं।"
लैप्रोस्कोपिक बैरियाट्रिक सर्जरी एक न्यूनतम इनवेसिव सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें पेट/आंत के हिस्से को हटाया या प्रतिबंधित और पुनर्व्यवस्थित किया जाता है। इससे भोजन का सेवन और आंत से अतिरिक्त कैलोरी के अवशोषण को सीमित किया जाता है, जिससे वज़न कम होता है। जब बैरियाट्रिक सर्जरी छोटे से विडियो कैमरे या लैप्रोस्कोप की सहायता से की जाती है, तो इसे 'लैप्रोस्कोपिक वेट लॉस सर्जरी' कहते हैं।